सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में निर्माण पर लगी रोक हटाई

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में निर्माण गतिविधियों पर लगे प्रतिबंध को पूरी तरह से हटा दिया है। न्यायालय ने पिछले साल चार नवंबर को दिल्ली-एनसीआर में सभी निर्माण एवं विविध निर्माणों को तोड़ने की गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। उसके करीब एक महीने बाद नौ दिसंबर को प्रतिबंध आंशिक रूप से हटा लिए गए थे और सुबह छह बजे से शाम छह बजे के बीच निर्माण कार्य के लिए मंजूरी दी गई थी। इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा था कि उस समय वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर गंभीर नहीं है। शुक्रवार को यह मामला न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष लाया गया। 
वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ से कहा कि प्रतिबंध को पूरी तरह से हटा लिया जाना चाहिए, क्योंकि इसका मकसद पूरा हो गया है। वह प्रदूषण संबंधी मामले में न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) हैं। भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ ने प्रतिबंध को हटा दिया। इससे दिल्ली-एनसीआर में रात के समय निर्माण गतिविधियों के लिए रास्ता साफ हो गया। इसके अलावा, पीठ ने एक अन्य आवेदन पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा। इस याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद यहां कचरा जलाया जा रहा है।  इस मामले में अगली सुनवाई 28 फरवरी को होगी।" alt="" aria-hidden="true" />



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27 मार्च को हाईकोर्ट ने मुस्तफाबाद कैंप से निकाले गए विस्थापित लोगों के लिए भोजन, चिकित्सा और आश्रय मुहैया करवाने के आदेश दिए थे। न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और नवीन चावला की पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार के वकील ने बताया कि कैंप से विस्थापितों के लिए उत्तर पूर्वी जिले में मोहल्ला क्लीनिक संचालित है। पीठ को बताया कि हिंसा के बाद मुस्तफाबाद ईदगाह में बनाए गए राहत शिविर को कोरोना वायरस के खतरे के कारण खाली कराया गया था। अब उन लोगों से संपर्क करके उन्हें लॉकडाउन की स्थिति में भोजन, पानी, मेडिकल और अन्य जरूरी सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।
उत्तर पूर्वी जिले में हिंसा के दौरान बेघर हुए लोगों को चिकित्सा और भोजन मुहैया कराने के आदेश पर दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार ईदगाह कैंप से निकलने वाले लोगों की तलाश कर रही है। यह पता करने की कोशिश की जा रही है विस्थापितों को चिकित्सा और भोजन की आवश्यकता है या नहीं?
मुस्तफाबाद कैंप में हिंसा के बाद 275 परिवार रह रहे थे। कोरोना वायरस महामारी के बाद लोगों को कैंप से निकाले जाने के खिलाफ शेख मुजतबा फारूक की ओर से याचिका दायर कर सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि कैंप से निकाले लोगों के लिए कैंप को फिर से खोला जाए, ताकि लोग सड़कों पर ना रहेें। इसके साथ लोगों के लिए पर्याप्त भोजन, चिकित्सा और पेयजल की मांग की गई। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिए थे। गौरतलब है कि 23 और 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी जिले में हुई हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हो गई थी और 250 से ज्यादा लोगों घायल हुए थे। इस दौरान कई परिवारों के घरों में आग लगा दी गई थी, जिस कारण काफी लोग बेघर हो गए थे।
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