किचन में स्टोव फरफराए जा रहा था और उसकी लौ पर खिचड़ी पक रही थी. मानो आज वक्त कुछ ज्यादा ही लग रहा था. अंजू को कूकर की तीसरी सीटी का इंतजार था. नजर नॉब पर टिकी थी, लेकिन कान बरामदे में बड़बड़ा रही सास पद्मा की ओर थे. स्टोव की फरफराहट के बीच भी पद्मा की शिकायती आवाज साफ सुनाई दे रही थी. वह दिन चढ़े सोएगी तो देर नहीं होगी. खुद का खयाल तक नहीं रखती फिर पति का खयाल कैसे रखेगी. ससुर रंगनाथ होठों पर उंगली लगा चुप रहने का इशारा करते रहे लेकिन पद्मा बुदबुदाती रही. हालांकि अंजू खीझ संभालते हुए खामोश तो रह गयी लेकिन उसके दिलोदिमाग में दर्द भरता चला गया. उसे क्या पता था कि देर से जगने पर इतनी हाय-तौबा मच जाएगी. उसका मन अंदर ही खुद से भिड़ गया था. न जाने आंख क्यों न खुली. वह खुद से बतियाए जा रही थी. अनपढ़ क्या जानेंगे कार्पोरेट की नौकरी क्या होती है. हजारों की पगार के लिए 8 घंटों तक बॉस की बकबक सुननी पड़ती है. कमाएंगें तब न जानेंगे. एक तो घर का काम काज उपर से दुनिया भर की तिमारदारी. आज आफिस लेट पहुंचने पर बॉस ने भी खूब सुनाया था. वह कुछ आर्गूमेंट भी नहीं कर सकी थी. बस सब कुछ सुनते रह गई थी. उसका मन वेदना से सराबोर हो गया था. आज मायके में होती तो सब कुछ छोडक़र चल देती. साफ बोल देती- इतना काम उससे नहीं होगा.
घर और आफिस की किचकिच नस्तर बनकर उसके दिमाग में चुभ रहे थे. वह अपना दुखड़ा शेयर करना चाहती थी, लेकिन कहे किससे. पति का मूड अक्सर बेगाना ही दिखता. अंबरीश के घर में बहू बनकर आए डेढ़ साल हो गए, लेकिन उसे नहीं पता कि आखिरी बार वह खुलकर कब हंसी थी. बेटी को विदा करते हुए उसकी मां मंजू ने हाथ जोडक़र कहा था कि घर की इज्जत हाथ सौंप रही हूं, ख्याल रखना. लेकिन यहां तो कोई दर्द सुनने वाला भी नहीं दिखता था. ससुराल आकर मानो वह और भी अकेली हो गई हो थी. भयभीत मन लिए उसने दरवाजे पर दस्तक दिया तो छोटी ननद ने अनमने से डोर खोला और किनारे हो गई. घर में घुसते ही सास ससूर सबके चेहरे पर अनमनापन था, मानो वह कोई अजनबी घर में आ पहुंचा हो.
वह न चाहकर भी मुस्कराते-देखते अंदर चली गई. पद्मा ने अंबरीश से पूछ ही लिया. बहू अकेली देर रात तक नौकरी करेगी तो लोग क्या कहेंगे.अंबरीश सुनता रहा, लेकिन अंजू को लगा कि बरामदे में जाकर अभी कह दे कि लोग तो बाद में कहेंगे-पहले अपनी जुबान पर तो ताला लगाओ.वह मन में ही फरियाद कर रही थी,तभी रंगनाथ बोल पड़े. अंबरीश, बहू अब नौकरी नहीं करेगी. ससुर की तल्ख आवाज मानो उसके कानों में गरम शीशा उड़ेल गई हो. उसका मन चीख-चीखकर रोने को हुआ. आवाज तो रोक ली,लेकिन उसके आंसू धार बनकर बह निकले.रात में भी वह निबाला नहीं खा सकी.ननद की जिरह के बाद भी वह खाट पर खामोश पड़ी रही बेजान-बेजुबान.
उसे मायके की याद आने लगी थी. मम्मी का प्यार उसके अंतर्मन में हिलोरे लेने लगे.नैनो में अश्रुजल उभरे जरुर, लेकिन वह पलकों में ही पी गयी.मायके में जरा सा सिर क्या चकराने लगता, मम्मी दौडक़र गोद में भर लेती. मेरा लाला तुम्हें क्या हुआ है. मेरे बच्चे और न जाने क्या-क्या.. दवा के साथ ढेर सारा प्यारा और लाखों दुआएं.मन में कई बार सवाल उठता बीमारी सिर्फ कहने से भला खत्म होती है क्या, लेकिन मम्मी की प्यार भरी सांत्वना में गजब की ताकत थी. पापा कहते हर मां के हाथ में जादू होता है. मां सहला कर बच्चों की पीड़ा हर लेती है. वो दिन..भी क्या थे..
पिता ब्रह्मानंद इलेक्ट्रिक कंपनी में इंजीनियर थे. कई सालों तक मंजू मां नहीं बन सकी तो दोनों कई मठों-मंदिरों के चक्कर काटे. कई जगह आशीष मांगे तब अंजू के रूप में पहली संतान मिली. मंजू की गोद भरी तो मन-आंगन में खुशियों के अंबार लग गए. कईयों ने बेटी पैदा होने पर तंज कसा.ब्रह्मानंद दहेज के लिए पैसे जुटाना शुरू कर दो.वे कहते बेटियां तो लक्ष्मी का रूप होती हैं, जिनके घर पैदा होती हैं वहां भी और जिनके घर जाती हैं वहां भी खुशहाली से भर देती हैं.मंजू को पति की बात पर गर्व होता. गांव में कई ऐसे परिवार थे जहां बेटी पैदा होने पर किचकिच रोज की बात थी. दिन, महीने साल गुजरे.बच्चे अब बड़े होने लगे थे.
मंजू पर पहाड़ तब टूटा जब ब्रह्मानंद एक दुर्घटना में सबको पीछे छोड़ गए.पत्नी के सामने अकेलापन था और मासूम बच्चों के सामने पूरी जिन्दगी.कई महीनों तक मंजू बांवरी बनी रही.उसने तो सोचा भी नहीं था कि बंद इंजन में तकनीक की जान भरने वाला इंजीनियर इस तरह अचानक खुद बेजान हो जाएगा.एक बेवा के सहारे दो बेटियां थी एक अनबूझ बेटा.पिता के बाद अंजू ने ही घर को संबल दिया.
जिन्दगी जीने के लिए नौकरी चाहिए थी और उसके लिए पढ़ाई जरुरी थी. अंजू सुबह खुद क्लास जाती और शाम को छोटे बच्चों को ट्यशन पढ़ाती मम्मी कहती ये सब बंद क्यों नहीं कर देती. उसका जवाब होता मै तो तुम्हारी चाय के लिए खर्च जुटाती हूं. हालांकि सब जानते थे कि अंजू की मेहनत से ही घर रेंगता है.दिन- महीने-बरस यूं ही तंगी और बाप की यादों के साए में गुजरते चले गए. अंजू ने जब नौकरी करने का निर्णय लिया तो तब भी मंजू ने समझाया. लोग क्या कहेंगे जवान बेटी से नौकरी कराती है. खुद बैठकर रोटी तोड़ती है.लेकिन यहां भी अंजू का हौसला जीता. वह कार्पोरेट कंपनी में पब्लिक कोआर्डिनेटर बन गई. मंजू सोचती अगर इंजीनियर साब होते तो कितने खुश होते, लेकिन तकदीर को भला कौन पढ़ पाया है. इसी तकदीर का ही तो खेल है कि जवान बेटी अब तक कुंवारी बैठी थी. मंजू के आंखों में चिंता के बादल छा गए.
रिश्तेदारों ने शादी की बात निकाली. आखिर बेटी है कब तलक घर में बिठाओगी..लेकिन दहेज की मांग सुनकर मंजु की रुह कांप जाती. बेटी के सगाई के लिए कईयों के सामने हाथ जोड़े. सबने यही कहा-वो जमाना चला गया जब बेटियां बिन दहेज बिदा हो पाएं..उसके मन में सवाल उभरते .फिर गरीब-बेसहारों की बेटियां आखिर कहां जाएंगी. क्या उनकी तकदीर में कुंवारी रहना ही लिखा है..सोचना मजबूरी भी थी और नियति भी.
कई महीने बाद पहाड़ी वाले बाबा आए तो जाते जाते एक रिश्ता बता गए. घर में तीन बहनों पर एक लडक़ा था..जिन्दा मां-बाप और खुद का कारोबार .टेक्निीशियन बेटे के लिए पढ़ी-लिखी बहू की दरकार थी. जो चार लोगों के परिवार को संभाल सके. बात आगे बढ़ी तो अंजू के लिए रिश्ते की तलाश यहीं पर खत्म हो गयी. सच कहते हैं कि जोडिय़ां तो उपर वाला आसमान में बनाता है यहां जमीन पर तो लोग केवल रिश्ते जोड़ते हैं. धूम धड़ाके के साथ अंजू ससुराल चली गयी.. वहां जहां उसे नए लोगों को अपना परिवार बनाना था. जहां वह बहू थी एक घर की.
अब जन्म देने वाली मां की जगह सासू मां थी पद्मा. अंबरीश पद्मा का इकलौता बेटा था.इसलिए नयी बहू से सास के अरमान भी ढेर सारे थे. पद्मा अक्सर कहती- बहू जरा बड़ों के सामने संभल कर पांव डाला करो..लेकिन शहर में पली बढ़ी अंजू के लिए ऐसी बातें से खीझ होती. लड़कियां अंतरिक्ष में पहुंच गयीं और यहां घर में भी पांव संभाल कर रखना है..सास साड़ी पहनकर काम करने की जिद करती, अंजू नाइटी एवं गाऊन में कम्फर्ट महसूस करती. हर रोज ऑफिस से घर पहुंचने के बीच इस तरह के न जाने कितने ही खयाल अंजू के जेहन में तैरते रहते.आज सासूमां कुछ बोल न दे. वह हर बार कोशिश में यही रहती कि कोई शिकायत न हो. लेकिन होता कुछ और ही था. यह सिलसिला थमा नहीं बल्कि रिश्तों में नयी दरार बनाता हुआ हद से पार होता गया. वह भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करती रही..अंजू को आज लग रहा था मानो उसके रास्ते ससुराल वालों से अलग हैं, शायद सोच और जीने का तरीका भी..वह उस रास्ते पर चलना और जीना चाहती थी जिसमें तंग सोच न हो, नयी चीजों की जगह हो. उसका सम्मान हो. ..आखिर सुख और सहूलियत से जीने का हक तो सबका है. लेकिन अंबरीश का परिवार कुछ बंधुआ संस्कारों में जीने का आदी था. ससूर रंगनाथ भी पद्मा के की हां में हां के कायल थे.शायद सब एक ही रास्ते के मुसाफिर..या फिर एक जैसे..
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शादी में मिले डायनिंग टेबल और कुर्सी को रंगनाथ कहते ये सब अमीरों के ठाट-बाट हैं..उन्हें फर्श पर बैठकर खाने में सुकून मिलता . उनकी अपनी दलील भी होती. बीस पचास हजार कमाने वालों के घर फ्रिज और वाशिंग मशीन चलेगा तो बचेगा क्या...-हाथ से कपड़े धोएंगे तो कौन से बाजू कट जाएंगे. अंजू कहती जब घर में सुविधाएं हैं तो उसका उपयोग करने में हर्ज क्या है. पद्मा चिल्ला उठती-चार दिन की बहूरिया होकर बड़ों से जुबान लड़ाती है .अंबरीश खामोश होकर सब कुछ सुनता रहता..अंजू को याद है कि तीन महीने पहले ननद के खिलाफ एक छोटी सी शिकायत क्या कर दी, अंबरीश ने उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया था. तुम हमारे परिवार में कलह मचाना चाहती हो..मेरी बहन पर इल्जाम मत लगाया करो.. और भी न जाने क्या ..अबंरीश यह सुनने को भी तैयार नहीं हुआ कि आखिर उसके बहन की गलती क्या थी.
अंबरीश के घर वालों की प्रॉब्लम अंजू की नौकरी थी जिसे वह छोडऩा नहीं चाहती थी लेकिन पद्मा उसे गलत संगत का नतीजा करार देती. औरतें कमाती हैं तो मर्द की इज्जत नहीं रहती..बीबी के लिए मां का तंज अंबरीश को अंदर तक चीर जाता लेकिन वह बोल कुछ भी नहीं पाता. मां से नाराजगी का गुस्सा अक्सर वह बीबी पर निकाल देता.बात हद से गुजरी तो अंजू ने ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया.
अंजू बेसुध मायके पहुंची तो मां मंजू का कलेजा कांप गया. मुश्किल मालूम हुई तो आंसू थमने से रहे. जिस घर में बेटी को सुख भोगने विदा किया उस घर से वह दुखी होकर लौट आए तो बेवा मां के पास रोने के सिवा और होगा भी क्या. वह सवाल पूछना चाहती थी कि आखिर उसकी बेटी का कसूर क्या है ..वह रोते हुए जिद करने लगी..मेरे साथ चलो देखें तो सही कौन सा गुनाह कर दिया बेटी ने..लेकिन अंजू ने यह कहकर मां का और दिल बैठा दिया कि अब वह उस घर में लौटना नहीं चाहती. ब्याहता बेटी के भटकाव भरे इन शब्दों से मंजू अंदर तक थर्रा गयी थी. वह समझाना चाहती थी कि बेटी - इतनी जल्दी जिन्दगी का फैसला नहीं करते..सुख दुख-प्यार तकरार तो जीवन का हिस्सा हैं. पति के साथ रहने में ही शादीशुदा औरत का सम्मान होता है. लेकिन बेटी की हालत देखकर वह चाहकर भी तत्काल कोई फैसले पर नहीं पहुंच सकी.
५
मायके में महीने भर गुजर गए लेकिन ससुराल से कोई खोज खबर लेने तक नहीं आया. इस हालत से मां मंजू व्याकुल थी कि कहीं अंबरीश ने हमेशा के लिए छोड़ दिया तो बेटी का क्या होगा. वह इश्वर से प्रार्थना करती कि वही कुछ रास्ता निकाल दे. वहां ससुराल में भी कम तकलीफें नहीं थी. बिना बताए बहू के घर छोड़ देने से ससूर रंगनाथ की खूब किरकीरी हुई. रिश्तेदारों में अंजू का घर छोड़ना बदनामी का बड़ा कारण बन गया. लोग पद्मा को भी ताने मारते. एक बहू को नहीं संभाल पायी..दो चार होतीं तो क्या होता. अकेले रोटी तोड़ने की आदत है..तो भला बहू कैसे खपेगी. अनपढ़ पद्मा पर पढ़ी-लिखी और पैसे कमाने वाली बहू नहीं संभाल पाने का भी आरोप लगता. इसे तो गांव की देहाती गुलाम चाहिए थी. अंबरीश के चाल -चलन पर भी उंगलियां उठी. आदत बूरी होगी..वर्ना चार दिन की आयी बहू घर और पति को छोडक़र थोड़े ही जाती. सवाल अंजू पर भी उठे. रंगनाथ को गहरा झटका तब लगा, जब बेटी के लिए रिश्ते ढूंढते समय परिवार के रहन सहन पर सवाल खड़े हो गए..सवाल सामाजिक प्रतिष्ठा का भी था ..चारो ओर से घिरे रंगनाथ ने पत्नी पद्मा को खूब खरी खोटी सुनाई. कुल पुरोहित ने भी समझाया-घर की इकलौती बहू को यूं मायके नहीं छोड़ते.रंगनाथ बहू को बेटी बनाकर रखना सीखो, वर्ना तु्म्हारी बेटी भी कल बहू बनकर जाएगी. सोचो यही हाल तुम्हारी बेटी के साथ भी ऐसा हो तो क्या होगा.कुलपुरोहित ने खुशहाल जीवन का मंत्र दिया. बहू को बेटी समझकर वापस बुलाओ, सारी टेंशन मिट जाएगी. अंजू के मायके जाने के बाद बेचैन बेटे की हालत का खयाल आया तो रंगनाथ की आत्मा व्याकुल हो उठी. उन्होंने सोंचा बहू नहीं आयी और मामला कानूनी दाव-पेंच में फंसा तो घर तबाह हो जाएगा. फैसला हुआ बहू को वापस बुलाने में ही भलाई है. वर्ना बेटियों की शादी में रोड़ा न फंस जाए.
आज चार महीने बाद जब अंबरीश ससुराल पहुंचा तो पति को अरसे बाद सामने देखकर अंजू की आंखे डबडबा गयीं. वह दर्द का गुबार पीते हुए उसके नैन बेदम होकर बह निकले. उसके मन में आया कि अंबरीश को पकडक़र पूछे कि आखिर उसने अपनी ब्याहता को लावारिस क्यों छोड़ दिया था..लेकिन पति को एक नजर देखने के बाद उसकी सारी हिम्मत हार गयी. गम का दबाव कम हुआ तो मंजू ने बेटी को सजा-सवांर कर बिदा किया. अंजू बिदा हुई तो इस बार उसके साथ अनुभवों के कई सिखावन और साथ गए..अंबरीश ने पत्नी की अवहेलना पर शर्मिंदगी जताई और गलतियां नहीं दुहराने का वादा किया. मंजू ने हाथ बढ़ाकर बेटी दामाद को गोद में भर लिया. आशीष के साथ गाड़ी गुबार छोड़ते हुए नयी उम्मीद और आशाओं के रास्ते पर रवाना हो गयी...अंजू और अंबरीश के लिए जिन्दगी का नया सफर शुरू हो गया था..