सौदागर - सुधीर शर्मा की कहानी

मीरगांव में फिर सभा लगी थी ऐसी सभा जैसी पहले कभी नहीं हुई. लोग दूर-दूर से आए थे. सोमरंजन को सुनने.  कहते हैं  विदेश में पढ़ते थे.लाखों रूपए तनख्वाह छोडक़र देश में ही कुछ करने की तमन्ना लेकर लौटे हैं..एकता पार्टी के सोमरंजन ने युवाओं की तकदीर संवारने का ऐलान किया. विकास का नारा दिया.घर-घर सुविधा पहुंचाने का वादा किया. बेरोजगारों के खाली हाथों में काम सौपने का किस्सा सुनाया..युवा जोश में उमड़े दिन रात काम किया..लेकिन वोटों का अंकगणित गड़बड़ाता देख युवाओं की नई थ्योरी अपनाई गयी..रिज्लट आने से पहले सोमरंजन और बिबेचन के समर्थक आपस में भीड़ गए. नारेबाजी और जयकारों के बीच संघर्ष की चिन्गारी उड़ी. शांति और भाईचारे का संदेश देने वाले उम्मीदवारों ने ही ललकार कर जंग लड़ाई. कानून गिड़गिड़ाता रहा और नैतिकता बेजार होती रही. एकता और लोकहित के  सिद्धांत पर बने दलों ने लोकतंत्र और स्व-राज की नई इबारत लिखी.आज इस मामले में फैसले की घड़ी थी.चुनाव रदद करते हुए. जज ने राजनीति की दिशा बदलने में जुटे नौजवानों को फर्जी वोटिंग, हिंसाचार और अशांति फैलाने के लिए दोषी करार दिया और कारावास की सजा सुनाई..ये वो नौजवान थे जिनकी तकदीर संवारने के लिए भाषणों में योजनाएं गूंजी,नारे दिए गए. जिनके जरिए जीत की नई कहानी लिखने की कवायद हुई. लेकिन मिला क्या.? मीरगांव के इतिहास ने पुरानी यादों और जख्मों को एक बार फिर ताजा कर दिया.बीते दिनों के हालात मानसपटल पर फरफराकर उभर आए....










गूगल से साभार


उस दिन लोग कंधे पर बैनर होर्डिंग थामे भागे जा रहे थे.दिपंकर ने पूछ लिया का बात है मजुमचा, सब बड़ी जल्दी में दिख रहे,भागे जा रहे जैसे कवनो गाड़ी छूट रही है.मजुम चा मुस्कराकर बोले हां, पैसे की गाड़ी छूट रही है . क्यों तुझे नही मालूम क्या. दिपंकर अंजान सा- बोला नहीं चा, सच्ची नहीं मालूम तुमही बताओ न का बात है . मजुम चा बोले-आज फुरसू चौराहे पर रबसाहू की जनसभा है. अगर तुमको भी पैसा कौड़ी की दरकार है तो तुम भी भीड़ बनकर चले जाओ. का बात करते हो चाचा? इधर तो मनरेगा का मजूरी नहीं टैम पर मिल रही, और तुम कहते हो कि भीड़ बनने से पैसा मिलता है. विश्वास नहीं हो रहा तो भीमबलिए से पूछ ले. तभी .वंशीलाल बोल पड़ा -नेता हैं रोज थोड़े आएंगे-जो मिलता है ले लो.वर्ना पांच साल बाद ही दिखेंगे. आखिर जब हमारा वोट लेकर ये कमा रहे हैं तो हम अपना वोट इन्हें मुफत में क्यों दें. वंशी की बात मजुमचा को अच्छी ना लगी वो बोलते चले गए आज पैसे के लिए भीड़ बनकर बिकें गे, कल पैसों के लिए वोट बेचेंगे..नहीं जानते वोट बेचने का मतलब क्या है? यह अधिकार है देश बदलने का इसे बेचना तो आने वाली पीढिय़ों का भविष्य बेचना है. मजुमचा बोलते जा रहे थे लेकिन उनकी सुनने वाला कोई न था. लोग सुनना ही नहीं चाहते.सबके मन में लालच समा गयी है.कया जनता क्या नेता. चुनाव सबके लिए पैसा कमाने का जरिया दिख रहा है. पिछली बार भी बबनसाह के टाइम पर  यही तो हुआ था. लाख मना करते रहे. पैसों पर वोट न दो लेकिन किसी ने एक न सुनी .क्या मिला ..गरीबों का मसीहा बनने का वादा कर गए नेता बब्बनसाह, पांच सालों में एक बार पूछने तक नहीं आए. फिर दूसरे नेता पर कैसे भरोसा करें.
 70 साल की अकलीबा भी यहां हाथ में झंडा पकड़े धूप में खड़ी थी. मन नहीं माना तो दिपंकर ने पूछ लिया-काकी तू इहां का कर रही है? अकलीबा दम संभालने लगी. मैने लाया है इसे-सोमेश बोल पड़ा-काकी पैसे कमाने आयी है. दो घंटे रह गयी तो 200 रूपैया मिल जाएंगे. वैसे भी घर में पड़े-पड़े खासने के और करती भी क्या है. यहां इस उम्र में दो पैसे मिल जाए तो तंबाकू सूर्ती के दाम निकल आएंगे.सोमेश बोलता गया, रबसाहू ने कहा है कि जो जितना आदमी लाएगा उतना जादा पैसा मिलेगा. दिपंकर सोंचता रह गया उसके मन में आया कि वह चिल्ला कर बोल दे कि रबसाहू जैसे लोगों के बहकावे में क्यों आते हो. ये कुछ भी देने वाले नहीं.
मजुमचा बताते हैं कि बिबेचन बाबू जब यहां मीरगांव से चुनाव लडऩे आए तो उनका दिखाया सपना लोगों के जेहन में जैसे घर कर गया..भीमबलिए घूम घूम कर प्रचार कर रहा था कि वोट करो, वोट करो, नेता जी को वोट करो..घर मिलेगा-सम्मान मिलेगा, रोटी-कपड़ा-मकान मिलेगा. बिबेचन बाबू की सभा के बीच हुए संघर्ष में जब अकलीबा का सुहाग उजड़ गया था.तब उन्होंने वादा किया था कि रामसमुझ जैसे निष्ठावान कार्यकर्ता की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी..लेकिन यह वादा आज भी अधूरा है..अकलीबा आज तक अपना दर्द लेकर जी रही है. अपने दिल की बात  भला किसे सुनाए. वैसे भी कौन सुनता है बेवा विधवा की आवाज. अकलीबा जैसी हजार विधवाएं हैं जो सिर्फ आस में जी रही हैं.
चार साल से अधिक गुजर गए मीरगांव की हालत नहीं बदली.
  पुराने वादे जस के तस हैं लेकिन बिबेचन  नेता से मंत्री हो गए. राजधानी में रहते हैं. देश विदेश में जहाज से घूमते हैं लेकिन यहां नहीं आते जहां लोगों को सपना दिखाकर गए थे. जहां लोगों से वादा कर वोट मांगे थे. नौकरी देने का, रोजगार देने का किसानों को खाद बीज देने का...यहां कुछ करने का इरादा दिखा कर गए थे.

फिर चर्चा है कि बिबेचन बाबू मीरगांव से दुबारा चुनाव लड़ेगे. उनकी जनसभा और भी बड़ी होने वाली है मीरगांव में. जितना बड़ा नेता उतनी बड़ी सभा.लेकिन ऐन टाइम पर बिबेचन की जगह कोई सोमरंजन नाम के नए प्रत्याशी खड़े हो गए.उनकी विशाल सभा के लिए लोगों की भीड़ का इंतजाम किया गया.उनके लिए रामसमुझ जैसे लठैत किसान नहींं नौजवानों की जरूरत है जो इंटरनेट चलाते हैं, फेसबुक पर देश की तकदीर सवांरते हैं. किसानों और मजदूरों वाले सभा समारोह के दिन अब कहां रहे. विमल मास्टर समझाते हैं यह 21वीं सदी का दौर है. जिसमें पेपर नहीं पुशिंग मशीन काम करती है.

.मजुम चाचा दरवाजे के पास पड़े तख्ते पर बैठे सामने दीवार पर लिखे चुनावी नारे की और एकटक निहारते जा रहे थे कि बीते जमाने की यादों के पन्ने फरफराकर उड़ते चले ..बापू ने कहा था कि देश में रामराज्य लाना है-यहां तो न राम के आदर्श दिख रहे न ही नैतिकता, फिर यह सपना कब पूरा होगा...वर्षों पहले किसी ने ऐसे ही सपने दिखाए. जो जेहन में सवाल बनकर परेशान करते हैं. किसे भूला है वो दिन जब मनोहर पुर की हाट में वोट पाने के लिए दो गुट आपस में ऐसे भिड़े कि खून खराबा हो उठा. विरोधी गुटों के कार्यकर्ताओं ने क्रोध की होली खेली.कपड़े फाड़े,एक दूजे का सिर फोड़े. मजुमचा का दाहिना पैर भी उसी मारपीट में टूटा. विरोधियों ने झगड़े में उनके उपर बैलगाड़ी धकेल दी.गनीमत रही कि गेहूं का बोरा पहिए के नीचे आ गया. अकलीबा को पागल बनाने वाला यही दंगा ही तो था. उसके पति को जंगमपुर के विरोधियों ने नेता का खासमखास समझ कर इतना पीटा कि जान ही चली गयी. मजुमचा का मन तो आज भी पुरानी बातों को सोंचकर रंज से भर जाता है. वो बड़बड़ा उठे जब जनता की कोई कद्र नहीं है तो उसका वोट डलवा कर चुनाव क्यों करवाते हैं. लेकिन उन्हें नहीं पता देश का लोकतंत्र उनके जैसे लोग नहीं बल्कि लोकसेवक चलाते हंै जो आम जनता से अलग सोंचते हैं..
अचानक दूर से सायरन की आवाज घर्राने लगी..कुछ ही पलों में आसमान में धूल उड़ाता हेलिकाप्टर मंडराने लगा. धूप में जमा लोगों की नारेबाजी शूरू हो गयी. आखिर भीड़ नारे बाजी के लिए ही तो जमा की गयी थी.सौ में दो सौ में..मुफत में भी..बिबेचन बाबू शान से उतरे पुलिसवालों के घेरे में जनता के बीच से होकर मंच पर गए .जनता जय जयकार करती रही.रबसाहू के चेहरे पर भीड़ की बुलंद आवाज का असर साफ दिख रहा था..टेबल पर रखे बोटल के साफ पानी से गला तर किया..और बोलते गए..हम आपके लिए आए हैं.आप के दुख दर्द समस्याओं को जानते हैं हमने कसम खाई है कि अगर जीत कर आए तो इस इलाके को स्वर्ग बना देंगे.भीड़ के एक कोने में बिन बुलाए आए मजुमचा के दिमाग का पारा गरमा गया, मन में आया कि बोल दे नेताजी गांव की कच्ची भट्ठी का नशीला पानी पीकर पांच लोग जान गवां चुके हैं , अब कौन सा स्वर्ग बनाना चाहते हो. लेकिन मन का गुस्सा मन में ही पी डाला.
दिपंकर चौपाल की ओर बढ़ चला, उस ओर जिधर जनसभा.हो रही थी..वहां सैकड़ों की भीड़ थी. बिबेचन बडक़ा नेता हैं. उनकी पहुंच दिल्ली बंबई तक है. उनके इशारे पर आला अधिकारी, पुलिस कोतवाल, हीरो-हिरोइन उमड़ते हैं.  बड़े तंबू कनात में बिबेचन बाबू माईक पर बोल रहे थे. वोट दो अपना कीमती वोट . हम घर देंगे. किसानों को बीज देंगे. खाद देंगे. नौजवानों को नौकरी, महिलाओं को रोजगार देंगे. सबको सम्मान मिलेगा, रोटी कपड़ा मकान मिलेगा..सपने भी पूरे होंगे.. बिबेचन बाबू बोलते चले गए ..ढेरों वादे इरादे सब कुछ गिनाते गए.  जाते-जाते जनता की तकदीर बदलने का वादा कर गए. सभा खतम हो गयी तो नेता गाडिय़ों में बैठकर धूल उड़ाते निकल लिए. कस्बे के समाजसेवक रबसाहू भी साथ हो लिए. और बेरोजगारी, गरीबी, नौजवानों की रंजिश का उड़ता हुआ गुबार पीछे फिर छूटता चला गया...


 


 

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