प्रारंभिक जीवन

स्वामी महावीर का प्रारंभिक नाम वर्धमान था. करीब ढाई हजार साल पूर्व बिहार के वैशाली गणराज्य क्षत्रीय कुंडलपुर ( आज के नालंदा जिला) में माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ के राजसी परिवार में उनका जन्म हुआ. 30 साल तक के पुर्वार्ध जीवन में वर्धमान राजसी ठाटबाट में जरूर जिए लेकिन मध्य के 12 साल गृहत्याग कर उन्होंने जंगल में तपस्वी बनकर जीवन जिया. बाद के 30 वर्ष उन्होंने प्राणि मात्र के कल्याण और जगत के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने में बिताए. उन्हें अतिवीर, सन्मति और वर्धमान के साथ ही 'जिन' नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं उनके 'जिन' नाम के कारण ही ऋषभदेव से प्रारंभ हुई वर्तमान चौबीसी का नाम 'जैन धर्म' पड़ा, जिसके वे प्रवर्तक और 24वें तीर्थंकर हुए.और इस तरह वे वर्धमान से स्वामी महावीर के रुप में विख्यात हो गए.
जीयो और जीने का संदेश 
 महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से मानव कल्याण की सही राह और दुनिया को जीने की नयी दिशा दिखाई. जातिगत विसंगतियों को ध्वस्त करने उन्होंने चार सर्वोदयी तीर्थों की स्थापना की जिनमें क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं.उन्होंने विश्व को दुखों और संघर्षों से मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग दिखाया. आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए महावीर स्वामी ने पंचशील सिद्धांत बताए- अहिंसा, सत्य , अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य. ये वो सिद्धांत हैं जिसका सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाएं अनिवार्य रुप से आज भी पालन करते हैं. यह सामान्य जनों को भी शाश्वत सुख पाने में पथदर्शक और प्रेरणादायी बना हुआ है.


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27 मार्च को हाईकोर्ट ने मुस्तफाबाद कैंप से निकाले गए विस्थापित लोगों के लिए भोजन, चिकित्सा और आश्रय मुहैया करवाने के आदेश दिए थे। न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और नवीन चावला की पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार के वकील ने बताया कि कैंप से विस्थापितों के लिए उत्तर पूर्वी जिले में मोहल्ला क्लीनिक संचालित है। पीठ को बताया कि हिंसा के बाद मुस्तफाबाद ईदगाह में बनाए गए राहत शिविर को कोरोना वायरस के खतरे के कारण खाली कराया गया था। अब उन लोगों से संपर्क करके उन्हें लॉकडाउन की स्थिति में भोजन, पानी, मेडिकल और अन्य जरूरी सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।
उत्तर पूर्वी जिले में हिंसा के दौरान बेघर हुए लोगों को चिकित्सा और भोजन मुहैया कराने के आदेश पर दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार ईदगाह कैंप से निकलने वाले लोगों की तलाश कर रही है। यह पता करने की कोशिश की जा रही है विस्थापितों को चिकित्सा और भोजन की आवश्यकता है या नहीं?
मुस्तफाबाद कैंप में हिंसा के बाद 275 परिवार रह रहे थे। कोरोना वायरस महामारी के बाद लोगों को कैंप से निकाले जाने के खिलाफ शेख मुजतबा फारूक की ओर से याचिका दायर कर सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि कैंप से निकाले लोगों के लिए कैंप को फिर से खोला जाए, ताकि लोग सड़कों पर ना रहेें। इसके साथ लोगों के लिए पर्याप्त भोजन, चिकित्सा और पेयजल की मांग की गई। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिए थे। गौरतलब है कि 23 और 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी जिले में हुई हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हो गई थी और 250 से ज्यादा लोगों घायल हुए थे। इस दौरान कई परिवारों के घरों में आग लगा दी गई थी, जिस कारण काफी लोग बेघर हो गए थे।
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