पथप्रदर्शक हैं महावीर की शिक्षाएं

आज दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन स्वामी महावीर की सैकड़ों साल पहले दी गई शिक्षाएं हमें नये युग में भी सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि 
''हे मानवों सत्य ही जीवन का सच्चा सार है जो बुद्धिमान सत्य की आज्ञा में रहते हैं वे मृत्यू और निराशा के भय से मुक्त हो जाते हैं.

उन्होंने कहा-अहिंसक बनो. इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक से 5 इंद्रियों वाले) हैं उनकी हिंसा मत करो. उन जीवों को उनके पथ से मत रोको. उनके प्रति मन में दया का भाव रखते हुए उनकी रक्षा करो.

अपरिग्रह अपनाओ. जीवन में आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह मत करो. जो व्यक्ति नश्वर वस्तुओं का संग्रह करता या सम्मति देता है उसे दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.

ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है इसका पालन करो.क्योंकि ब्रह्मचर्य ही उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ है. जो स्त्रियों से आशक्त नहीं हैं वही मोक्ष की ओर बढ़ते हैं.

क्षमा भाव रखते हुए सब जीवों के प्रति कृतज्ञ रहो. सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखो. वे कहते हैं कि '' मैं सब जीवों से अपने सारे अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं. सब जीवों ने मेरे साथ जो अपराध किए हैं उन्हें भी मैं क्षमा करता हूं. मनसा, वाचा, कर्मणा मेरी सभी पापवृत्तियां नष्ट और विफल हो जाएं.

स्वामी महावीर कहते हैं कि 'धर्म' सबसे उत्तम मंगल है. अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है. और जो धर्मात्मा हैं. जिनके मन में सदैव धर्म जागृत रहता है, वे देवताओं के लिए भी आदरणीय हैं.
           
 महावीर स्वामी का जैन धर्म ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए किसी ईश्वर या परम शक्ति की धारणा का प्रतिपादन नहीं करता. जैन दर्शन के अनुसार, यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है. जिसके आधार ''जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म नामक 6 द्रव्य हैं. इनका अस्तित्व सदैव रहा है और आगे भी रहेगा. जैन धर्म कहता है कि '' भगवान एक अमूर्तिक वस्तु है और वह मूर्तिक वस्तु यानी ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकता.  जैन धर्म दर्शन के मुताबिक ' हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है. और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है. आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण ही यह गुण प्रकट नहीं हो पाते. किन्तु सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है. इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है. 

कहते हैं कि स्वामी महावीर के संघ में इंद्रभूति समेत 11 गणधर थे. 14 हजार दिगंबर मुनि, 36 हजार आर्यिकाएं, 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाएं थी. 527 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक की दीपावली को भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया. स्वामी महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया. त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार की प्रेरणा दी. उन्होंने चतुर्दिक संघ के जरिए अपने कैवल्यज्ञान को देश में घूमघूम कर फैलाया.


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