बाप ने कुल्हाड़ी से बेटे को मौत के घाट उतारा

पुलिस के मुताबिक कोतवाली क्षेत्र के लंगड़ी देवरिया निवासी ऋषिकेश उर्फ शेरू विश्वकर्मा पुत्र उपेंद्र विश्वकर्मा का दूसरा मकान अमेठी मंदिर के समीप है। जिसमें ऋषिकेश टिंबर की दुकान चलाते थे। दुकान में ही दूसरी मंजिल पर उनका ड्राइवर कमलेश अपने परिवार के साथ रहता है। घटना की रात किसी ने ऋषिकेश को फोन किया कि तुम्हारे पिता शराब के नशे में विवाद कर रहे हैं। वह घर से दुकान के पास पहुंचा और उन्हें समझा कर दुकान पर ले आया। यहां दोनों के बीच विवाद हो गया। उसके बाद रात में वहीं बरामदे में वह सोने गया तो पिता ने पास रखी कुल्हाड़ी से उसके सिर व गर्दन के नीचे लगातार प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया। घटना के बाद ड्राइवर व मृतक का पिता फरार हो गए। कोतवाली पुलिस मृतक के हमलावर पिता को गिरफ्तार कर पूछताछ कर रही है। एसपी डा. श्रीपति मिश्र ने कहा कि हमलावर से पूछताछ की जा रही है। परिजनों ने अभी तहरीर नहीं दी है


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27 मार्च को हाईकोर्ट ने मुस्तफाबाद कैंप से निकाले गए विस्थापित लोगों के लिए भोजन, चिकित्सा और आश्रय मुहैया करवाने के आदेश दिए थे। न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और नवीन चावला की पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार के वकील ने बताया कि कैंप से विस्थापितों के लिए उत्तर पूर्वी जिले में मोहल्ला क्लीनिक संचालित है। पीठ को बताया कि हिंसा के बाद मुस्तफाबाद ईदगाह में बनाए गए राहत शिविर को कोरोना वायरस के खतरे के कारण खाली कराया गया था। अब उन लोगों से संपर्क करके उन्हें लॉकडाउन की स्थिति में भोजन, पानी, मेडिकल और अन्य जरूरी सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।
उत्तर पूर्वी जिले में हिंसा के दौरान बेघर हुए लोगों को चिकित्सा और भोजन मुहैया कराने के आदेश पर दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार ईदगाह कैंप से निकलने वाले लोगों की तलाश कर रही है। यह पता करने की कोशिश की जा रही है विस्थापितों को चिकित्सा और भोजन की आवश्यकता है या नहीं?
मुस्तफाबाद कैंप में हिंसा के बाद 275 परिवार रह रहे थे। कोरोना वायरस महामारी के बाद लोगों को कैंप से निकाले जाने के खिलाफ शेख मुजतबा फारूक की ओर से याचिका दायर कर सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि कैंप से निकाले लोगों के लिए कैंप को फिर से खोला जाए, ताकि लोग सड़कों पर ना रहेें। इसके साथ लोगों के लिए पर्याप्त भोजन, चिकित्सा और पेयजल की मांग की गई। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिए थे। गौरतलब है कि 23 और 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी जिले में हुई हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हो गई थी और 250 से ज्यादा लोगों घायल हुए थे। इस दौरान कई परिवारों के घरों में आग लगा दी गई थी, जिस कारण काफी लोग बेघर हो गए थे।
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